
बाड़मेर। बाड़मेर (Barmer) जिले में बाहर राज्यों से पहुंचने वाली ट्रेनों ओर बसों सफर तय कर बाड़मेर पहुंचे मानसिक विमंदित के जीवन में उजियारा करने के लिए स्कूल के प्रधानाचार्य ने अनूठी पहल करते हुए मानसिक विमंदितो के हाथों को हुनर बंद बनाकर अब बल्ब बनवाए जा रहे है और उनके जीवन में उजियारा हो रहा है। दरअसल जिनको न तो अपने घर का पता है और न ही कोई अपनों के बारे में जानकारी है।
ऐसे मानसिक विमंदित लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए गेहूं गांव में स्थित साईं श्योर संस्था की ओर से संचालित मानसिक विमंदित पुनर्वास गृह सोमाणियों की ढाणी के प्रधानाध्यापक अनिल शर्मा ने बीड़ा उठाया है। पुनर्वास गृह में ही बल्ब बनाने का कार्य शुरू किया। इसमें ठीक ठाक समझ रखने वाले मानसिक विमंदितों को ट्रेनिंग अब अच्छी क्वालिटी के बल्ब बनाने को लेकर दी जा रही है।मानसिक विमंदितों को खाली समय का उपयोग करना सीखा रहे हैं ताकि वे इस रोजगार के हुनर को सीखे और आत्मनिर्भर बन सके।
संस्था की ओर से संचालित मानसिक विमंदित पुनर्वास गृह सोमाणियों की ढाणी में मानसिक विमंदितों को हुनरमंद बनाने का यह कार्य किया जा रहा है। प्रधानाचार्य अनिल शर्मा ने बताया की बल्ब बनाने के लिए दिल्ली से रॉ मेटेरियल मंगवाते हैं और यहां पर बल्ब तैयार करते हैं। एक बल्ब बाजार में सौ से पांच सौ रुपए तक में मिलता है, वो यहां पर 30 से 150 रुपए तक मिल जाता है। ये विमंदित रोज 50 से 100 तक बल्ब बनाते हैं। मानसिक पुनर्वास विमंदित गृह की ओर से इन लाभार्थियों को बल्ब के उपयोग में आने वाली सामग्री लाकर दी जा रही है। ऐसे में ये बल्ब बनाकर तैयार कर रहे हैं। सफेद रोशनी वाले बल्ब के अलावा रंगीन बल्ब व चार्जेबल बल्ब भी बना रहे हैं।
इसके अलावा इसकी एक वर्ष तक की गारंटी भी। इसके लिए अभी तक सिर्फ यहां आने वाले लोगों के जरिए ही सामग्री बेची जा रही है। सस्ते के साथ एक साल की गारंटी के साथ बेचे जाने वाले इन बल्ब की स्थानीय स्तर पर मांग बढ़ी हैं। बल्ब बनते ही व्यापारी यहां आकर ले जाते हैं। आगामी दिनों में मेलों सहित अन्य अवसरों पर स्टॉले लगाकर बल्ब सहित अन्य निर्मित सामग्री का प्रचार किया जाएगा। साथ ही अनिल शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि विमंदित लाभार्थियों को जीवन में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
इनको व्यवसायिक गतिविधि से जोड़कर हुनर सीखाने के लिए कई आइडिया सोचे लेकिन आखिर में बल्ब बनाने का आइडिया पसंद आ गया और इसको शुरू किया। इसके लिए कच्ची सामग्री दिल्ली से लाते हैं। सीखाने के लिए एक इंस्ट्रक्टर है इनकी देखरेख में बल्ब बनाने की ट्रेनिंग लेते हैं और बनाते हैं। अगर देश के हर मानसिक विमंदित को इस तरह की ट्रेनिंग देकर उन्हें आत्म निर्भर बनाया जाए तो जहां देश में घूमने वाले विमंदित भी सही राह पर आगे बढ़ेंगे और उनके जीवन में भी अंधकार दूर होकर उजियारा हो जाएगा।
रिपोर्ट – ठाकराराम मेघवाल