जैसलमेर।जिला कलेक्टर गिरीराजसिंह कुशवाहा द्वारा 2011में अपने कार्यकाल में राजस्थान सरकार के मुख्य सचिव एस. अहमद को सरहद स्थित घोटारू, गणेशिया और किशनगढ़ किले को संरक्षित स्मारक घोषित करने हेतू पत्र लिखा उसी वजह से कला साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व विभाग की ओर से जैसलमेर के आस पास बने घोटारू, गणेशिया के साथ साथ किशनगढ़ किले को संरक्षित स्मारक घोषित करने के लिये इसका निरीक्षण कर इसकी रिपोर्ट तैयार करने के लिये एक दल आया।
संरक्षित स्मारक घोषित करने की घोषणा
इसमें पुरातत्व अधीक्षक सहित जैसलमेर संग्रहालय अध्यक्ष भी शामिल रहे। इस निरीक्षण दल की तरफ से बनाई गई रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने अधिसूचना जारी कर सरकार से आपत्तियां मांगी गई थी। आपत्तियां नहीं मिलने की स्थिति में कला, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व विभाग ने राजस्थान स्मारक पुरावशेष स्थान और प्राचीन वस्तु अधिनियम 1961 के तहत राज्य सरकार की ओर से घोटारू, गणेशिया और किशनगढ़ किले को संरक्षित स्मारक घोषित करने की घोषणा 22 नवम्बर 2011 में जारी कर दी गई थी।
संरक्षित स्मारक घोषित होने के बाद यहां के लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब इस किले के दिन बदलने वाले हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सरकारी उपेक्षा के चलते संरक्षित स्मारक होने के बाद भी न्यायिक रस्साकशी में फंसे इन किलो की किस्मत संवर नहीं पाई है.जैसलमेर की पाकिस्तान से लगती सीमा पर बने होने के कारण तीनों किले सीमा सुरक्षा बल के अधिकार क्षेत्र में है किले संरक्षित स्मारक होने के कारण बीएसएफ मरम्मत करने में असमर्थ है।
पुरातत्व विभाग के संरक्षण में घोषित होने के कारण बीएसएफ वाले कोई आना कानी नही कर सकते पुरातत्व विभाग और जिला प्रशासन की संवेदनहीनता की वजह से पिछले 13 साल से किलों को कोई रखरखाव नही मिला है किशनगढ़ सहित तीनों गौरवशाली किले जो कि पुरातत्व विभाग के अधीक्षक इमरान अली के बताये अनुसार संरक्षीत स्मारकों के रुप में सुचिबध है अपनी सार संभाल के अभाव में जर्जर होते जा रहे है।
पर्यटकों के आने की पाबंदी
किशनगढ़ किला मुगल और सिंध शैली का नायाब नमूना है यह किला जैसलमेर जिला मुख्यालय से पकिस्तान सीमा की तरफ 145 किलोमीटर दूर स्थित है। सीमा पर बने होने के कारण सुरक्षा के लिहाज से इस किले पर पर्यटकों के आने की पाबंदी लगी हुई है और यही वजह है कि देखरेख के अभाव में यह किला दम तोड़ता नजर आ रहा है। इतिहास की अगर बात करें तो जैसलमेर से करीब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर और भायलपुर पाकिस्तान की सीमा के नजदीक जैसलमेर के प्राचीन किशनगढ़ परगने का मार्ग देरावल और मुल्तान की ओर से जाता था।
बंटवारे से पहले और रियासत काल में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के लिये इसी रास्ते से होकर जाना पड़ता था. ऐसे में सीमा पर बना यह किला ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था. इस किले का निर्माण 11सौ वर्ष पूर्व दावद खां उर्फ दीनू खां ने करवाया था. जिसके वजह से इसका प्रारम्भिक नाम दीनगढ़ था. इतिहासकार बताते हैं कि दावद खां के पौत्रों से हुई संधि के बाद महारावल मूलराजसिंह के समय इसका नाम बदल कर कृष्णगढ़ रखा गया था. जिसे आज किशनगढ़ के नाम से जाना जाता है. अठारवीं शताब्दी का यह किला वास्तुशिल्प संरचना का अद्भुद नमूना है।
इस किले का निर्माण पक्की इंटों से करवाया गया है और इसमें दो मंजिलें बनी हुई है. किले में मस्जिद, महल और पानी का कुआ भी बना हुआ है. मुगल और सिंध शैली के मिश्रण से बना यह किला अपनी निर्माण तकनीक में बेजोड़ है. यही कारण है कि आज भी उपेक्षा का दंश झेलने के बावजूद यह डटा खड़ा है.सीमा सुरक्षा बल ने किशनगढ़ के पास सैन्य चौकी का निर्माण किया है जहां पर सैकड़ों सैनिक रहते हैं।
यह किला दिन-ब-दिन अपना स्वरूप खोता जा रहा
आगामी दिनों में अगर इस किले की ओर गंभीरता पूर्वक नजर नहीं डाली गई तो जमींदोज होता यह किला इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह जायेगा। कागजों की अगर बात करें तो जैसलमेर के इस सरहदी किले किशनगढ़ को संरक्षित स्मारक बनाया गया है।लेकिन जगह-जगह से ढही इसकी दीवारें, अपनी जगह छोड़ती ईंटे, उपेक्षा का दंश झेलती इसकी बुर्जियां, कक्ष और प्राचीर को देखने से यह कहीं भी नहीं लगता है कि इस किले का किसी भी रूप में संरक्षण हो रहा है. बदहाली का यह सूरते हाल देख कर अपने आप ही स्पष्ट हो रहा है कि लंबे समय से इस किले की सुध नहीं ली गई ई है।
घोटारू किला 1765 में बनाया गया था यह रेगिस्तानी रेशम मार्ग पर एक प्रमुख किला था वर्तमान में खंडहर हो चुका है किले के अंदर घोटारू माता का मंदिर है। ऐतिहासिक रुप से घोटारू किला सिंध जैसलमेर रियासत के बीच यात्रा करने वाले व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र था घोटारू किले में व्यापारियों के लिए सुरक्षा और सुविधाएं प्रदान की जाती थी।
गणेशिया किले की भी स्थिति खराब
2011 में तत्कालीन जिला कलेकटरगिरीराजसिंह कुशवाहा द्वारा अपने कार्यकाल में सीमावर्ती गुंजनगढ़ की सड़क का निर्माण भी करवाया उनके जिले की जनता के प्रति एक पिता तुल्य भाव रहे उनके द्वारा ईमानदारी पूर्वक किये जाने वाले कार्यशेली से परेशान नेता हरीश चौधरी ने अपने निजी स्वार्थ के चलते उनका तबादला सवाई माधोपुर करवा दिया कुशवाहा निरंतर जैसलमेर पदासीन रहते तो आज तकतीनों किलो का पुरातत्व विभाग को सहयोग देकर नया जीवन दान दे देते जिससे जैसलमेर के पर्यटन को पँख लग जाते। वर्तमान जिला कलेक्टर प्रतापसिंह का कहना है कि प्रशासन पुरातत्व विभाग के संपर्क में है,वे तीनों किलो को संरक्षीत करने के विकल्प तलाश रहे है।
रिपोर्ट: कपिल डांगरा, जैसलमेर