जीवाणा। मारवाड़ इस फल को देसी अंगूर भी कहा जाता है। घर आये मेहमानों के सामने परोसा जाता है। और एक दूसरे को उपहार स्वरूप भी दिए जाते है। भूमि भले ही बंजर हो, लेकिन प्रकृति ने कुछ अनमोल सौगातें मारवाड़ के लोगों को भी प्रदान किए है। प्रचंड गर्मी की शुरुआत होते ही मारवाड़ में विषम हालात में भी जिंदा रहने वाले पौधे फल देना शुरू कर देते है।
कैर-सांगरी, कुब्ट जैसी सब्जियों के साथ ही छोटे आकार के रंग-बिरंगे फल पीलू से लकदक जाल लोगों को बरबस ही अपनी तरफ आकर्षित करना शुरू कर देती है। एकदम मीठे रस भरे इस फल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे अकेला खाते ही जीभ छिल जाती है। ऐसे में एक साथ आठ-दस दाने मुंह में डालने पड़ते है। ऐसा होता है पीलू।
- पीलू का पेड़ बेतरतीबी से फैलाव लिए होता है। इस कारण स्थानीय मारवाड़ी भाषा में इसे जाल कहा जाता है। एक जाल के समान ही कोई इसमें उलझ सकता है। जमीन तक फैले जाल के ऊपर बकरियां बड़े आराम से चढ़ जाती है। तेज गर्मी के साथ जाल के पेड़ पर हरियाली छा जाती है और फल लगना शुरू हो जाते है।
- चने के आकार के रसदार फल को पीलू कहा जाता है। लाल, पीले रंग के इन फलों से एकदम मीठा रस निकलता है। इन दिनों मारवाड़ में हर तरफ पीलू की बहार आई हुई है। इसे तोड़ने के लिए महिलाएं व बच्चे सुबह जल्दी गले में एक डोरी से लोटा बांध जाल पर जा चढ़ते है। एक-एक पीलू को तोड़ एकत्र करते है।
पीलू खाने का भी है अलग तरीका
- पीलू को खाने का भी एक अलग तरीका है। यदि किसी ने एक-एक कर पीलू खाए तो उसकी जीभ छिल जाएगी। वहीं एक साथ आठ-दस पीलू मुंह में डाले कर खाने पर जीभ बिलकुल नहीं छिलती। लू से करता है बचाव
- मारवाड़ के इस मेवे के बारे में प्रसिद्ध है कि यह पौष्टिकता से भरपूर होता है। मारवाड़ में जितनी अधिक गर्मी और तेज लू चलेंगी पीलू उतने ही रसीले व मीठे होते है। और इसे खाने से लू नहीं लगती। साथ ही इसमें कई प्रकार के औषधीय गुण भी होते है। औषधीय गुण के कारण महिलाएं पीलू को लोग एकत्र कर सुखा कर प्रीजर्व कर लेती है। ताकि बाद में जरुरत पड़ने पर ऑफ सीजन में भी खाया जा सके।
अकाल और भीषण गर्मी के दौरान जब अधिकतर पेड़-पौधे सूख जाते है और उनमें पतझड़ शुरू हो जाता है, ऐसे समय में भी यह पौधा हरा भरा रहता है और इसमें फल भी होते हैं। जो यहां के आमजन के साथ साथ जीव-जंतुओं में पानी की कमी और अन्य कई आवश्यक तत्वों की पूर्ति करता है। इतना ही नहीं इस पौधें की हरी टहनियां ग्रामीणों के लिए टूथब्रश और इसके पत्ते माउथ फ्रेशनर की तरह प्रयोग में लाये जाते हैं। इसके अलावा परंपरागत औषधि के रूप में भी इसके फल, फुल, पत्तियों आदि का कई रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है।
पीलू और कैर से जुड़ी मान्यताएं
- मारवाड़ में ऐसी मान्यता है कि जिस वर्ष कैर और पीलू की जोरदार बहार आती है उस वर्ष जमाना अच्छा होता है। इस बार मारवाड़ में कैर व पीलू की जोरदार उपज हुई है। ऐसे में लोगों का कहना है कि इस बार मारवाड़ में अच्छी बारिश होगी।
रिपोर्ट: रूपाराम चौधरी, जीवाणा