मुंबई। औरंगाबाद लोकसभा सीट महाराष्ट्र की एक प्रमुख लोकसभा सीट है। गत वर्ष शिंदे सरकार ने औरंगाबाद जिले का नाम बदलकर छत्रपति संभाजी नगर कर दिया था। राज्य सरकार के प्रस्ताव पर केंद्र की मंजूरी के बाद यह संभव हो सका है। हालांकि, लोकसभा सीट का नाम अभी भी औरंगाबाद ही है। सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इस शहर में शिवसेना के दोनों गुट नाम बदलने का श्रेय लेना चाहते हैं। इनमें से एक गुट सत्तारूढ़ महायुति के साथ है दूसरा महा विकास अघाड़ी के साथ है। जबकि दूसरी तरफ एआईएमआईएम सीट बरकरार रखने की कोशिश कर रही है। ऐसे में इस सीट पर मुकाबला अब त्रिकोणीय हो गया है।
इसके अतिरिक्त पिछले लोकसभा चुनाव में पूरी मजबूती के साथ स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़े और 2.83 लाख वोट प्राप्त कर तीसरे स्थान पर रहे हर्षवर्धन जाधव एक बार फिर से चुनावी मैदान में हैं। अब देखना यह है कि यहां से किसकी जय होती है। औरंगाबाद लोकसभा सीट के भीतर कुल छह विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें कुटुम्बा, औरंगाबाद, रफीगंज, गुरुआ, इमामगंज और टिकारी सीटें हैं। कुटुम्बा और इमामगंज रिजर्व सीटें हैं। इस सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो शुरू में यह कांग्रेस का गढ़ रहा, लेकिन 1999 आते-आते शिवसेना ने यहां अपना पैर जमा लिया। 1952 में जब पहली बार लोकसभा के चुनाव हुए थे तब यहां से कांग्रेस पार्टी के सुरेश चंद्र पहली बार सांसद बने। इसके बाद 1957 में कांग्रेस ने स्वामी रामानंद तीर्थ को टिकट दिया और उन्हें जीत मिली।
1962 में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदला और भाऊराव दगदु राव देशमुख को टिकट दिया और वो पार्टी की उम्मीदों पर खरे भी उतरे। 1967 में भी वही जीते। 1977 के लोकसभा चुनाव में जब देश में कांग्रेस के खिलाफ में लहर थी तब इस सीट पर जनता पार्टी का खाता खुला और बापू काळदाते सांसद बने। हालांकि, 1980 के चुनाव में यह सीट फिर से कांग्रेस के पाले में चली गई और काजी सलीम यहां से एमपी बने। 1984 में के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से साहेबराव डोणगावकर को टिकट दिया और वो जीत भी गए।
1989 से 1996 तक यह सीट शिवसेना के कब्जे में रही और मोरेश्वर सावे और प्रदीप जयसवाल सांसद बने थे। 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने रामकृष्ण बाबा पाटिल को मैदान में उतारा और वो सांसद चुने गए। इसके बाद 1999 में यह सीट शिवसेना के पाले में चली गई और 2014 तक उसी के कब्जे में रही। 2019 के चुनाव में यहां सियासी समीकरण बदले और जनता ने अपना मूड चेंज किया और सीट एआईएमआईएम के हवाले चली गई और इम्तियाज जलील यहां से सांसद बन गए। इससे पहले इस सीट पर एआईएमआईएम का अपना कोई राजनीतिक इतिहास नहीं था।
चार बार के सांसद खैरे शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवार
कांग्रेस और एनसीपी (शरद चंद्र पवार) की सहयोगी सेना (यूबीटी) ने चार बार के सांसद चंद्रकांत खैरे पर भरोसा जताया है, जो 2019 में एआईएमआईएम के इम्तियाज जलील से सिर्फ 4,492 वोटों से हार गए थे। यह वह क्षेत्र है, जो मुंबई के बाहर पहली जगह थी, जहां 1990 के दशक की शुरुआत में बाल ठाकरे ने अपने पैर जमाए थे।
चंद्रकांत खैरे का मानना है कि इस बार उन्हें औरंगाबाद के मुसलमान भी वोट देंगे क्योंकि कोविड काल के दौरान उद्धव ठाकरे ने बतौर मुख्यमंत्री बिना किसी भेदभाव के मुस्लिम समुदाय का भी ध्यान रखा था। चंद्रकांत खैरे शिवसेना के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। औरंगाबाद नगर निगम में पार्षद के रूप में 1988 से राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले खैरे ने महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री, औरंगाबाद के संरक्षक मंत्री, लोकसभा में शिवसेना के संसदीय दल के नेता जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों का निर्वहन किया है।
एआईएमआईएम सांसद इम्तियाज मजबूत दावेदार
औरंगाबाद लोकसभा सीट से वर्तमान सांसद इम्तियाज जलील एक बार फिर पूरी दमखम से चुनावी मैदान में हैं। ओवैसी बंधुओं की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के लिए यह एक प्रतिष्ठा की लड़ाई है, क्योंकि औरंगाबाद सीट हैदराबाद के बाहर उसकी पहली चुनावी जीत में से एक थी। जलील को पत्रकारिता छोड़े भले ही 10 साल हो गए हों लेकिन वे मानते है कि आज भी उनके तेवर पत्रकारों जैसे ही हैं।
जलील के मुताबिक वे सत्ता की खामियां गिनाते हैं, सरकार से सवाल पूछने पर जोर देते हैं और लोगों की आवाज बनने की कोशिश करते हैं। इस बार भी जलील सत्ताधारी भगवा गठबंधन पर निशाना साधने से नहीं चूक रहे हैं। इम्तियाज जलील ने सन 2019 के लोकसभा चुनाव में चंद्रकांत खैरे को हराकर महाराष्ट्र में एआईएमआईएम का खाता लोकसभा के लिए खोला था। चंद्रकांत खैरे 1999 से लेकर 2019 तक लगातार 20 साल इस सीट से सांसद रहे।
शिवसेना के टिकट पर मंत्री भुमरे मैदान में
औरंगाबाद लोकसभा सीट शिंदे सेना ने रोजगार गारंटी योजना और बागवानी मंत्रालयों का नेतृत्व करने वाले संदीपन भुमरे का मुकाबला औरंगाबाद सीट (अब छत्रपति संभाजीनगर) पर शिवसेना (यूबीटी) नेता चंद्रकांत खैरे और एआईएमआईएम के इम्तियाज जलील से है। भूमरे पड़ोसी जालना जिले के पैठण विधानसभा से विधायक हैं।
संदीपनराव भुमरे मराठवाड़ा क्षेत्र से शिवसेना के दिग्गज नेता हैं। वह 1995, 1999, 2004, 2014 और 2019 में पांच बार विधानसभा के लिए चुने गए हैं। वह रेणुका देवी-शरद सहकारी चीनी फैक्ट्री के अध्यक्ष भी हैं। वर्तमान में वे महाराष्ट्र सरकार में रोजगार गारंटी मंत्री एवं औरंगाबाद जिले के संरक्षक मंत्री हैं। महाराष्ट्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में संदीपन भुमरे ने मराठा आंदोलन को खत्म कराने एवं मनोज जरांगे पाटिल की भूख हड़ताल खत्म कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
अजीत कुमार राय / जागरूक टाइम्स