राजसमंद (Rajsamand) जिसकी जैसी चित्तवृत्ति हुई ये संसार वैसा ही बन जाता है। ये संसार तो धर्मशाला है कुछ क्षण के लिए इसमें रुकना है और फिर आगे चल देना है। इस रुकने और चलने के बीच के समय को ईश्वर के चरणों में समर्पित करना है। श्रीराम कथा के सप्तम दिवस पर मानस मर्म को उजागर करते हुए साध्वी सुहृदय गिरि ने कहा कि अपने जीवन का उद्देश्य भी परमात्मा को प्राप्त करना है। उद्देश्य से कभी भटक भी सकते है लेकिन सत्संग की लहर में बैठ कर फिर रास्ते पर आ सकते हैं।
साध्वी सुहृदय ने कथा के विश्राम दिवस के अवसर पर कहा कि ईर्ष्या से दूसरों की नहीं स्वयं की ही हानि होती है। ईर्ष्या से पार पाना है तो संतुष्टि के भाव को मन में प्रबल करना होगा। जब भी जीवन में संकट आता है तो भगवान की कथा ही संकट मोचक बनती है। साध्वी ने व्यास पीठ से राम – हनुमान मिलन, बाली – सुग्रीव, राम – रावण युद्ध, राम राज्याभिषेक का भाव पूर्ण चित्रण कर श्रोताओं का मन मोह लिया। कथा के प्रारंभ में व्यास पीठ का पूजन मधुप्रकाश अनुराधा लड्ढा, गिरिराज मंजू मुद्गल, गिरीश राजकुमारी अग्रवाल ने किया। वहीं कथा श्रवण के दौरान हरिकृष्ण जी पालीवाल, उदयलाल स्वर्णकार, नगर परिषद चेयरमैन अशोक टांक, फतेहचंद सामसुखा, मीठालाल शर्मा, नेता प्रतिपक्ष हिम्मत कुमावत, पूर्व अध्यक्ष आशा पालीवाल, निर्मला पालीवाल, दिनेश स्वर्णकार, पार्षद चंचल नंदवाना, उत्तम खींची, प्रहलाद सिंह, गिरीश अग्रवाल, चंदन सिंह आसोलिया, राकेश गौड़, प्रदीप लड्ढा, प्रदीप खत्री, सुशील बड़ाला, शिवलाल खींची, अर्जुन लाल लड्ढा, गोपाल गट्टाणी, चतुर्भुज सरोज गट्टाणी, तरुण साहू, लटूर राम बलाई, मुकेश साहू, भगवत सिंह चारण सहित श्रोताओं का अपार जनसमुदाय उपस्थित था।
रिपोर्ट – नरेंद्र सिंह खंगारोत
