
बिहार में मखाना (Makhana) उत्पादन का वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण स्थान है, जो दुनिया की कुल उपज का लगभग 85% योगदान देता है। बीते दशक में इसकी खेती में बड़ा परिवर्तन देखा गया है। पारंपरिक तालाब आधारित खेती के बजाय अब खेतों में इसकी खेती तेजी से बढ़ी है। इस बदलाव के चलते बिहार में मखाना की खेती का क्षेत्रफल 35,000 हेक्टेयर से अधिक हो गया है, जबकि उत्पादन 56,000 टन से ज्यादा पहुंच गया है।
PM Modi भी करते हैं मखाने का सेवन, वैश्विक स्तर पर बढ़ेगा उत्पादन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को खुलासा किया कि वह मखाने को “सुपरफूड” मानते हैं और साल में कम से कम 300 दिन इसका सेवन करते हैं। उन्होंने बिहार के इस पारंपरिक फसल के उत्पादन को वैश्विक स्तर तक पहुंचाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
“अब मखाना देश के शहरों में नाश्ते का अहम हिस्सा बन चुका है। व्यक्तिगत रूप से, मैं साल में 300 दिन मखाना खाता हूं। यह एक सुपरफूड है, जिसे हमें अब वैश्विक बाजारों तक पहुंचाना होगा। इसी कारण इस साल के बजट में सरकार ने मखाना किसानों के हित में मखाना बोर्ड बनाने की घोषणा की है,” प्रधानमंत्री मोदी ने भागलपुर में एक रैली के दौरान कहा।
उन्होंने कहा कि यह पहल मूल्यवर्धन (Value Addition), बेहतर विपणन रणनीतियों और बिहार के किसानों की आजीविका को सुधारने पर केंद्रित होगी।
मखाना बोर्ड: किसानों और उद्योग के लिए एक नई उम्मीद
वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में मखाना बोर्ड की स्थापना की घोषणा बिहार के किसानों और इस उद्योग के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है। यह कदम न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मखाना की ब्रांडिंग को मजबूती देगा, बल्कि किसानों की आय और राज्य की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ाएगा। इस बोर्ड के तहत किसानों को आधुनिक खेती के तरीके अपनाने के लिए प्रशिक्षण, संसाधन और वित्तीय सहायता दी जाएगी।
मखाना बिहार की सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न हिस्सा है। यह धार्मिक अनुष्ठानों और त्योहारों में विशेष स्थान रखता है। इसके साथ ही, मखाना को सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है, जिससे इसकी व्यावसायिक मांग तेजी से बढ़ रही है। हालांकि, खाद्य प्रसंस्करण तकनीक की कमी और सीमित बाजार पहुंच के कारण किसानों को कच्चे मखाने के लिए उचित मूल्य नहीं मिल पाता।
मखाना उद्योग को मिलेगा नया विस्तार
नवंबर 2024 में अपने बिहार दौरे के दौरान, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मखाना उद्योग की क्षमता को नजदीक से देखा। मखाना बोर्ड उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन के तीन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगा। शोध एवं विकास को बढ़ावा देकर उन्नत किस्म के मखाने विकसित किए जाएंगे और किसानों को आधुनिक तकनीकों पर प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अलावा, बिहार सरकार की सब्सिडी योजनाएं किसानों को अधिक उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करेंगी।
मखाना बोर्ड किसानों को खेती के लिए आवश्यक उपकरण और तकनीक उपलब्ध कराने में मदद करेगा, जिससे पारंपरिक श्रम-प्रधान खेती से हटकर अधिक उत्पादक और लाभदायक प्रणाली अपनाई जा सके।
बिहार में खाद्य प्रसंस्करण और बाजार बढ़ाने की पहल
केंद्र सरकार बिहार में राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान स्थापित करने जा रही है, जो मखाना प्रसंस्करण को नई गति देगा। इसके अलावा, मिथिला मखाना को भौगोलिक संकेत (GI टैग) मिलने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी विश्वसनीयता और मांग बढ़ी है।
मखाना बोर्ड के साथ ही, किसान उत्पादक संगठन (FPO) भी किसानों के लिए उपयोगी साबित होंगे। ये संगठन छोटे किसानों को संसाधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ सामूहिक रूप से बाजार तक पहुंच बनाने में मदद करेंगे। इससे किसानों की मोलभाव करने की क्षमता बढ़ेगी और वे बिचौलियों पर कम निर्भर होंगे, जिससे उनकी आय में वृद्धि होगी।
बिहार में अब तक 1,000 से अधिक एफपीओ बनाए जा चुके हैं, जिनमें 689 को केंद्रीय योजनाओं के तहत, 296 को जैविक कॉरिडोर योजना के अंतर्गत, और 19 को बिहार राज्य बागवानी विकास योजना के तहत स्थापित किया गया है। इसके अलावा, बिहार ग्रामीण आजीविका प्रोत्साहन सोसायटी ने 61 एफपीओ बनाए हैं, जबकि नाबार्ड ने 200 से अधिक एफपीओ के गठन में सहयोग दिया है।
2025 से 2035 तक मखाना उद्योग का विस्तार
बिहार सरकार का लक्ष्य है कि 2035 तक मखाना की खेती का क्षेत्रफल 70,000 हेक्टेयर तक पहुंचे और बीज उत्पादन अगले तीन वर्षों में दोगुना हो जाए। इसके साथ ही, पॉप मखाने का उत्पादन 23,000 मीट्रिक टन से बढ़कर 78,000 मीट्रिक टन तक पहुंचने का अनुमान है। किसानों के स्तर पर मखाने का बाजार मूल्य वर्तमान में 550 करोड़ रुपये से बढ़कर 3,900 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है, जबकि प्रोसेस्ड मखाने का बाजार मूल्य 2,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 13,260 करोड़ रुपये होने की संभावना है।
इस वृद्धि से न केवल बिहार की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे। 2035 तक मखाना उत्पादन से जुड़े परिवारों की संख्या 20,000 से बढ़कर 50,000 हो सकती है, जबकि प्रसंस्करण उद्योग में कार्यरत लोगों की संख्या 5 लाख से बढ़कर 7 लाख तक पहुंच सकती है।
वैश्विक बाजार में बिहार के मखाने की पहचान
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार कहा था, “एक दिन हर थाली में बिहारी व्यंजन होगा।” यह सपना अब साकार होने के करीब है। मखाने का निर्यात कई देशों में किया जाता है, और मखाना बोर्ड की मदद से बिहार वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है। इसके लिए निर्यात आधारभूत संरचना को मजबूत करना बेहद जरूरी है। दरभंगा और प्रस्तावित पूर्णिया हवाई अड्डे घरेलू परिवहन को सुगम बनाएंगे, जबकि पटना का नया ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व में मखाने की बढ़ती मांग को पूरा करने में सहायक होगा।
मखाना बोर्ड: बिहार की अर्थव्यवस्था को नई दिशा
मखाना बोर्ड बिहार के किसानों और इस उद्योग के लिए “गेम चेंजर” साबित हो सकता है। यह पारंपरिक खेती को आधुनिक, निर्यात-उन्मुख और लाभदायक व्यवसाय में बदलने की क्षमता रखता है। सरकारी सहयोग, किसानों की मेहनत और निजी क्षेत्र की भागीदारी से बिहार का मखाना उद्योग नई ऊंचाइयों को छू सकता है। यह प्रयास बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाएगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए समृद्धि के नए द्वार खोलेगा।